- पूर्ण मोक्ष किस मंत्र के जाप करने से होता है ?
सामवेद के श्लोक नं . 822 में बताया गया है कि जीव की मुक्ति तीन नामों से होगी । प्रथम ऊँ , दूसरा सतनाम ( तत् ) और तीसरा सारनाम ( सत् ) । यही गीता जी भी प्रमाण देती है कि - ऊँ - तत् - सत् और श्री गुरु ग्रन्थ साहेब भी इसी सतनाम जपने का इशारा कर रहा है । सतनाम - सतनाम कोई जपने का नाम नहीं है । यह तो उस नाम की तरफ इशारा कर रहा है जो एक सच्चा नाम है । इसी तरह यह सारनाम भी । अकेला ऊँ मन्त्र किसी काम का नहीं है । ये तीनों नाम व नाम देने की आज्ञा (जगत गुरु संत रामपाल जी महाराज) को स्वामी रामदेवानन्द जी महाराज द्वारा बकसीस है जो कबीर साहेब से पीढी दर पीढी चलती आ रही है ।
पहले आप सतसंग सुनो , सेवा करो जिससे आपका भक्ति रूपी खेत संवर जाएगा ।
कबीर , मानुष जन्म पाय कर , नहीं रटै हरि नाम ।
जैसे कुआँ जल बिना , खुदवाया किस काम ।।
कबीर , एक हरि के नाम बिना , ये राजा ऋषभ हो ।
माटी ढोवै कुम्हार की , घास न डाल।।
इसके पश्चात अपने संवरे हए खेत में बीज बोना होगा । शास्त्रों ( कबीर साहेब की वाणी , वेद , गीता , पुराण , कराण , धर्मदास साहेब आदि संतों की वाणी ) के अध्ययन से मुक्ति नहीं होगी । इन सभी शास्त्रों का एक ही सार ( निचोड ) है कि पूर्ण मुक्ति के लिए पूर्ण परमात्मा कबीर साहेब के प्रतिनिधि संत ( जिनको उनके गुरु द्वारा नाम देने की आज्ञा भी हो ) से नाम उपदेश ले कर आत्म कल्याण करवाना । चाहिए । यदि नाम नहीं लिया तो-
नाम बिना सूना नगर , पडया सकल में शोर ।
लूट न लूटी बंदगी , हो गया हंसा भोर । ।
अदली आरती अदल अजूनी , नाम बिना है काया सूनी ।
झूठी काया खाल लुहारा , इंगला पिंगला सुषमन द्वारा ।।
कृतघ्नी भूले नर लोई , जा घट निश्चय नाम न होई ।
सो नर कीट पतंग भुजंगा , चौरासी में धर है अंगा ।।
यदि बीज नहीं बीजा तो आत्मा रूपी खेत की गुड़ाई अर्थात् तैयारी करना व्यर्थ हुआ । कहने का अभिप्राय यह है कि इनसे आपको ज्ञान होगा जो कि आवश्यक है । परंतु पूर्ण गुरू द्वारा नाम उपदेश लेना अर्थात बीज बीजना भी अति आवश्यक है । नाम भी वही जपना होगा जो कि गुरु नानक साहेब ने जपा , गरीबदास साहेब ने जपा , धर्मदास साहेब आदि संतों ने जपा । इसके अतिरिक्त अन्य नामों से जीव की मुक्ति नहीं होगी । इसलिए आप सभी ने नाम उपदेश लेकर अपना भक्ति रूपी धन जोडना प्रारम्भ करना चाहिए और अन्य सभी को भी बताना चाहिए । जितना जल्दी हो सके उतना जल्दी । चूंकि न जाने कब और किस समय इस शरीर का पूरा होने का समय आ जाए ।
गुरु नानक देव जी भी कहते हैं कि -
ना जाने ये काल की कर डारै , किस विधि ढल जा पासा वे ।
जिन्हादे सिर ते मौत खुड़गदी , उन्हानूं केड़ा हांसा वे।।
कबीर साहेब जी कहते है कि -
कबीर स्वांस - स्वांस में नाम जपो , व्यर्था स्वांस मत खोए।
न जाने इस स्वांस का , आवन हो के ना होए । ।
सतगुरू सोई जो सारनाम दृढ़ावै , और गुरू कोई काम न आवै।
" सार नाम बिन पुरुष ( भगवान ) द्रोही " अर्थात जो गुरू सारनाम व सारशब्द नहीं देता है या उसको अपने गुरू द्वारा नाम देने का अधिकार ( आज्ञा ) नहीं है अर्थात शास्त्रों के अध्ययन से यदि कोई मनमुखी गुरु ये नाम भी दे देता हो तो भी वह गुरु और उनके शिष्यों को नरक में डाला जाएगा । वह गुरु भगवान का दुश्मन है , विद्रोही है । उसे भगवान के दरबार में उल्टा लटकाया जाएगा । अब भक्त समाज में नकली गुरुओं ( संतों ) द्वारा एक गलत धारणा फैला रखी है कि एक बार गुरु धारण करने के पश्चात दूसरा गुरु नहीं बदलना चाहिए । जरा विचार करके देखो कि गुरु हमारे जन्म - मरण रूपी रोग को काटने वाला वैद्य होता है । यदि एक वैद्य से हमारा रोग नहीं कटता है तो हम दूसरे अच्छे वैद्य ( डॉक्टर ) के पास जाएंगे जिससे हमारा जानलेवा रोग ठीक हो सके । इसी प्रकार अधूरे गुरु को तुरंत त्याग देना चाहिए ।
" झूठे गुरु के पक्ष को , तजत न कीजै वारि "
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Labels: geeta ji, guru granth sahib, kabir is god, quran sarif, Vedas, Who is god
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