- Q. कौन तथा कैसा है कुल का मालिक ?
जिन - जिन पुण्यात्माओं ने परमात्मा
को प्राप्त किया उन्होंने बताया कि मालिक एक है । वह मानव सदृश तेजोमय शरीर युक्त है । जिसके एक रोम का प्रकाश करोड़ सूर्य तथा करोड़ चन्द्रमाओं की रोशनी से भी अधिक है । उसी ने नाना रूप बनाए हैं । परमेश्वर का वास्तविक नाम अपनी - अपनी भाषाओं
कविर्देव ( वेदों में संस्कत भाषा में ) तथा हक्का कबीर ( श्री गुरु ग्रन्थ साहेब में नं . 721 पर क्षेत्रीय भाषा में ) तथा सत् कबीर ( श्री धर्मदास जी की वाणी में क्षेत्रीय भाषा में ) तथा बन्दी छोड़ कबीर ( सन्त गरीबदास जी के सद्ग्रन्थ में क्षेत्रीय भाषा में ) कबीरा , कबीरन व खबीरा या खबीरन् ( श्री कुरान शरीफ सूरत फुकानि नं . आयत नं . 19 , 21 , 52 , 58 , 59 में क्षेत्रीय अरबी भाषा में ) । इसी पूर्ण परमात्मा के उपमात्मक नाम अनामी पुरुष , अगम पुरुष , अलख पुरुष , सतपुरुष , अकाल मूर्ति , शब्द स्वरूपी राम , पूर्ण ब्रह्म , परम अक्षर ब्रह्म आदि हैं
जैसे देश के प्रधानमंत्री का वास्तविक शरीर का नाम कुछ और होता है तथा उपमात्मक नाम प्रधान मंत्री जी , प्राइम मिनिस्टर जी अलग होता है । जैसे भारत देश का प्रधानमंत्री जी अपने पास । गृह विभाग रख लेता है । जब वह उस विभाग के दस्तावेजों पर हस्ताक्षर करता । है तो वहाँ गृहमंत्री की भूमिका करता है तथा अपना पद भी गृहमन्त्री लिखता है । हस्ताक्षर वही होते हैं । इसी प्रकार ईश्वरीय सत्ता को समझना है । जिन सन्तों व ऋषियों को परमात्मा प्राप्ति नहीं हुई , उन्होंने अपना अन्तिम अनभव बताया है कि प्रभु का केवल प्रकाश देखा जा सकता है , प्रभ दिखाई नहीं । देता क्योंकि उसका कोई आकार नहीं है तथा शरीर में धुनि सुनना आदि प्रभु भक्ति की उपलब्धि है ।
आओ विचार करें - जैसे कोई अंधा अन्य अंधों में अपने आपको आंखों वाला सिद्ध किए बैठा हो और कहता है कि रात्री में चन्द्रमा की रोशनी बहुत मन भावनी होती है , मैं देखता हूँ । अन्य अन्धे शिष्यों ने पूछा कि गुरु जी चन्द्रमा कैसा होता है । चतुर अन्धे ने उत्तर दिया कि चन्द्रमा तो निराकार है वह दिखाई थोडे ही दे सकता है । कोई कहे सूर्य निराकार है वह दिखाई नहीं देता रवि स्वप्रकाशित है इसलिए उसका केवल प्रकाश दिखाई देता है ।
प्रमाण
1.
आदरणीय दादू साहेब जी ( अमृत वाणी में प्रमाण ) की के साक्षी - ही जब सात वर्ष के बालक थे तब पूर्ण परमात्मा जिंदा आदरणीय दादू साहेब जी जब सात वर्ष के बालक थे तब । महात्मा के रूप में मिले तथा सत्यलोक ले गए । तीन दिन तक दादू जी बेहोश होश में आने के पश्चात् परमेश्वर की महिमा की आँखों देखी बहुत - सी अमृतवाणी उच्चारण की
जिन मोकं निज नाम दिया , सोइ सतगुरु हमार ।
दादू दूसरा कोई नहीं , कबीर सिरजनहार।। 1
दादू नाम कबीर की , जै कोई लेवे ओट ।
उनको कबहू लागे नहीं , काल वज्र की चोट ।। 2
दादू नाम कबीर का , सुनकर कापे काल ।
नाम भरोसे जो नर चले , होवे न बंका बाल । । 3
जो जो शरण कबीर के , तरगए अनन्त अपार ।
दादू गुण कीता कहे , कहत न आवै पार । । 4
कबीर कर्ता आप है , दूजा नाहि कोय ।
दादू पूरन जगत को , भक्ति दृढावत सोय । । 5
ठेका परन होय जब , सब कोई तजै शरीर ।
दादू काल गॅजे नहीं , जपै जो नाम कबीर । ।6
आदमी की आयु घटै , तब यम घेरे आय ।
सुमिरन किया कबीर का , दादू लिया बचाय । ।7
मेटि दिया अपराध सब , आय मिले छनमाह ।
दादू संग ले चले , कबीर चरण की छांह । । 8
सेवक देव निज चरण का , दादू अपना जान ।
भंगी सत्य कबीर ने , कीन्हा आप समान । ।9
दादू अन्तरगत सदा , छिन छिन सुमिरन ध्यान ।
वारु नाम कबीर पर पल - पल मेरा प्रान । । 10
सुन - 2 साखी कबीर की , काल नवावै माथ ।
धन्य धन्य हो तिन लोक में , दादू जोड़े हाथ । । 11
2.
पूर्ण परमात्मा
सन्त गरीबदास जी को मानव शरीर में साक्षात्कार हुआ था , एक यादगार विद्यमान है । ) आदरणीय गरीबदास जी की आत्मा अपने परमात्मा कबीर बन्दी छोड़ के साथ चले जाने के बाद उन्हें मृत जान कर चिता पर रख कर जलाने की तैयारी करने लगे उसी समय आदरणीय गरीबदास साहेब जी की आत्मा को उसी समय पूर्ण परमेश्वर ने शरीर में प्रवेश कर दिया । दस वर्षीय बालक गरीब दास जीवित हो गए । उसके बाद उस पूर्ण परमात्मा का आँखों देखा विवरण अपनी अमृत वाणी शब्द - में " सद्ग्रन्थ ' नाम से ग्रन्थ की रचना की ।
अमृत वाणी में प्रमाण :
अजब नगर में ले गया , हमकू सतगुरु आन ।
झिलके बिम्ब अगाध गति , सूते चादर तान । ।
अनन्त कोटि ब्रह्मण्ड का एक रति नहीं भार ।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं कुल के सृजन हार । ।
गैबी ख्याल विशाल सतगरु , अचल दिगम्बर थीर है ।
भक्ति हेत काया धर आये अविगत सत कबीर है । ।
हरदम खोज हनोज हाजर , त्रिवेणी के तीर है ।
दास गरीब तबीब सतगरु बन्दीछोड कबीर है । ।
हम सल्तानी नानक तारे , दादू कू उपदेश दिया ।
जात जुलाहा भेद नहीं पाया , काशी माहे कबीर हुआ । ।
सब पदवी के मल हैं , सकल सिद्धि है तीर ।
दास गरीब सतपुरुष भजो , अविगत कला कबीर । ।
जिंदा जोगी जगत गुरु , मालिक मुरशद पीर ।
दहूं दीन झगड़ा मंड्या , पाया नहीं शरीर । ।
उपरोक्त वाणी में आदरणीय गरीबदास साहेब जी महाराज ने स्पष्ट कर दिया कि
काशी वाले धाणक ( जुलाह ) ने मुझे भी नाम दान देकर पार किया यही काशी वाला धाणक ही ( सतपुरुष ) पूर्ण ब्रह्म है ।
ऐसे अनेकों प्रमाण है अवश्य पढ़ें ज्ञान गंगा पुस्तक
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